क्यूँ रुका है ये जहाँ,
क्यूँ रुकी है जिंदगी,
क्यूँ नहीं भाता मुझे,
ये जश्न का माहौल आज !!
नया नहीं है ये समां,
नयी नहीं है जिंदगी,
समझ सकूँ इस हाल को,
नहीं है इतना सब्र आज !!
मिलता नहीं है चैन क्यूँ,
इसका जवाब न मेरे पास,
ये मन वहां रुके जहाँ,
इसकी किसी को है न आस !!
आज यहीं ख़त्म हुआ,
कल लगे बेमोल आज, !!!
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!!! चल चले ऐ जिंदगी
उस चैन की तलाश में,
!!! जहाँ नया सवेरा आएगा
और सब निश्चित हो जायेगा.!!
— शांतनु कौशिक